वांछित मन्त्र चुनें

ई॒डि॒तो दे॒वैर्हरि॑वाँ२ऽअभि॒ष्टिरा॒जुह्वा॑नो ह॒विषा॒ शर्द्ध॑मानः। पु॒र॒न्द॒रो गो॑त्र॒भिद्वज्र॑बाहु॒राया॑तु य॒ज्ञमुप॑ नो जुषा॒णः ॥३८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ई॒डि॒तः। दे॒वैः। हरि॑वा॒निति॒ हरि॑ऽवान्। अ॒भि॒ष्टिः। आ॒जुह्वा॑न॒ इत्या॒ऽजुह्वा॑नः। ह॒विषा॑। शर्द्ध॑मानः। पु॒र॒न्द॒र इति॑ पुरम्ऽद॒रः। गो॒त्र॒भिदिति॑ गोत्र॒ऽभित्। वज्र॑बाहु॒रिति॒ वज्र॑ऽबाहुः। आ। या॒तु॒। य॒ज्ञम्। उप॑। नः॒। जु॒षा॒णः ॥३८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:20» मन्त्र:38


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! आप जैसे (हरिवान्) उत्तम घोड़ोंवाला (वज्रबाहुः) जिसकी भुजाओं में वज्र विद्यमान (पुरन्दरः) जो शत्रुओं के नगरों का विदीर्ण करनेहारा सेनापति (गोत्रभित्) मेघ को विदीर्ण करनेहारा सूर्य जैसे रसों का सेवन करे, वैसे अपनी सेना का सेवन करता है, वैसे (देवैः) विद्वानों से (ईडितः) प्रशंसित (अभिष्टिः) सब ओर से यज्ञ के करनेहारे (आजुह्वानः) विद्वानों ने सत्कारपूर्वक बुलाये हुए (हविषा) सद्विद्या के दान और ग्रहण से (शर्द्धमानः) सहन करते और (जुषाणः) प्रसन्न होते हुए आप (नः) हमारे (यज्ञम्) यज्ञ को (उप, आ, यातु) अच्छे प्रकार प्राप्त हूजिये ॥३८ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सेनापति सेना को और सूर्य मेघ को बढ़ाकर सब जगत् की रक्षा करता है, वैसे धार्मिक अध्यापकों को अध्ययन करनेहारों के साथ पढ़ना और पढ़ाना कर, विद्या से सब प्राणियों की रक्षा करनी चाहिये ॥३८ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(ईडितः) स्तुतः (देवैः) विद्वद्भिः (हरिवान्) प्रशस्ता हरयोऽश्वा विद्यन्ते यस्य सः (अभिष्टिः) अभितः सर्वत इष्टयो यज्ञा यस्य सः। अत्र छान्दसो वर्णलोपो वेति इकारलोपः (आजुह्वानः) सर्वतो विद्वद्भिः कृताह्वानः (हविषा) सद्विद्यादानाऽऽदानेन (शर्द्धमानः) सहमानः (पुरन्दरः) यो रिपुपुराणि दृणाति सः (गोत्रभित्) यो गोत्रं मेघं भिनत्ति सः (वज्रबाहुः) वज्रहस्तः (आ) (यातु) आगच्छतु (यज्ञम्) (उप) (नः) (जुषाणः) प्रीतः सन् ॥३८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यथा हरिवान् वज्रबाहुः पुरन्दरः सेनेशो गोत्रभित् सूर्य्यो रसानिव स्वसेनां सेवते तथा देवैरीडितोऽभिष्टिराजुह्वानो हविषा शर्द्धमानो जुषाणो भवान्नो यज्ञमुपायातु ॥३८ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सेनापतिः सेनां सूर्यो मेघं च वर्द्धयित्वा सर्वं जगद्रक्षति, तथा धार्मिकैरध्यापकैरध्येतृभिः सहाऽध्यापनाध्ययने कृत्वा विद्यया सर्वप्राणिनो रक्षणीयाः ॥३८ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सेनापती सेनेची व सूर्य मेघांची वृद्धी करून सर्व जगाचे रक्षण करतो तसे धार्मिक अध्यापकांनी अध्ययन, अध्यापन करून विद्येने सर्व प्राण्यांचे रक्षण केले पाहिजे.